साझा काव्य संग्रह ‘‘मीरा भई दीवानी’’ के रचनाकार आ0 गिरीशचन्द्र ओझा जी के द्वारा एक बेहतरीन समीक्षा प्रस्तुत की गई है जो कविताओं की मूल आत्मा को छू सी गई है। उनके द्वारा पुस्तक में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का गहन अध्ययन कर उनके बार में बहुत ही विस्तृत विवेचनात्मक समीक्षा की गई है जो इस प्रकार है:
पुस्तक समीक्षा,
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मीरा भई दीवानी: एक नज़र,
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जगत के उद्धारक,न्याय व प्रेम के समर्पण की मूर्ति भगवान श्री कृष्ण के पाद – पद्मो में समर्पित आदरणीय मनोज कुमार सिंह के सम्पादन में ब्राइट एम पी पब्लिशर, फरीदाबाद, हरियाणा से प्रकाशित १०० पृष्ठों का भक्तिपरक साझा काव्य संकलन वास्तव में भक्ति की गंगा – धारा बहाता एक पावन साहित्यिक दस्तावेज है जिसमे आपाद – मस्तक स्नान कर मन मगन हो जाता है।
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पटना,बिहार से श्रीमती परिणीता राज खुशबू; गरियाबंद, छत्तीसगढ़ से श्री अशोक कुमार शर्मा गौतम; बिलासपुर,हिमाचल प्रदेश से डाॅ अनेक संख्यान; कोटा , राजस्थान से गरिमा राकेश गर्विता; गाजीपुर, उत्तर प्रदेश से श्री शिव प्रकाश पांडेय” साहित्य”; सुचित्रा,सिकंदराबाद से श्री मनोरमा शर्मा “मनु”; जमुई,बिहार से श्री सुनील सागर;सोनभद्र, ऊ ० प्र ० से श्री राजेश कुमार श्रीवास्तव”राजेश राही”; छतरपुर,मध्य प्रदेश से श्रीमती संध्या मिश्रा;उधमसिंह नगर से डा गायत्री पांडेय; जयपुर, राजस्थान से श्रीमती पल्लवी माथुर; रेवाड़ी, हरियाणा से श्री वीर सागर” महासर”; हमीरपुर, ऊ ० प्र ० से श्री बालकिशुन जोशी”चंचल”;कल्याण,मुंबई,महाराष्ट्र से आदरणीय सुमंगला सुमन और कासगंज, ऊ ० प्र से सारस्वत श्री सुधीर यादव जैसे देश भर से विद्वान साहित्यकारों की रचनाओं का समावेश किया गया है।*
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श्रीमती परिणीता राज खुशबू जी अपनी रचना”मैं मीरा” में देखिए क्या लिखती हैं —
” न राधा, न मीरा हूॅ मैं,
दो नामों के साथ,कृष्ण की ही अलग – अलग दो आकार हूॅ मैं।।”
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डा अनेक संख्यान जी अपनी रचना” मीरा भई बावरिया” में एक स्थान पर कहते हैं —
” तेरे रंग में रंग ली चुनरिया,
मोर श्याम साॅवरिया।।
छीने सुध – बुध तेरी बाॅसुरिया!
मोर श्याम साॅवरिया।।”
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पेंटर प्रेम प्रजापति जी अपनी रचना में एक स्थान” कृष्ण भक्ति भई मीरा दीवानी”में एक स्थान पर कहते हैं —
” मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।
दूब गई वो तो भक्ति सागर।
बन गई मीरा,दरस दीवानी।
कृष्ण भक्ति भई मीरा दीवानी।”
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श्रीमती मनोरमा शर्मा मनु जी अपनी रचना” थोड़ा सा ठहर जाओ तुम” में देखिए क्या लिखती हैं —
” ढहे हृदय में सज गया है आज स्वप्न।
पंछी बनकर फड़फड़ाने लगा है मन।
बनी मैं मीरा और दुःख भागा दबाकर दुम।
अभी न जाओ,थोड़ा सा ठहर जाओ तुम।।”
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संध्या मिश्रा जी अपने पद में एक स्थान पर लिखती हैं —
” राजमहल की रानी,
सुंदर सुघर सुहानी ।
सखी री ! एक,
मीरा भई दीवानी।।”
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श्री सुरेश लाल श्रीवास्तव,जहाॅगीर गंज,अंबेडकर नगर, ऊ ०प्र० से अपनी रचना” मानव तन की महत्ता” में देखिए क्या कहते हैं —
” तुम प्रेम करो सत्कर्मों से,
इससे जीवन सम्मान बढे।
जो जैसा कर्म विधान करे,
उसको वैसी पहचान मिले।”
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पंडित देव शर्मा पुष्कर जी अपनी रचना” मीरा की जीवन गाथा ” में एक स्थान पर कहते हैं —
” सदा बताती मीरा को,
मोहन पतिदेव तुम्हारे हैं।
मीरा ने भी सच मान लिया,
वह तो जग के,उजियारे हैं।”
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शोभा सोनी श्रद्धा जी अपनी रचना” घनश्याम साॅवरिया” में देखिए क्या लिखती हैं —
” सुंदर सलोना श्याम साॅवरिया,
जिसे देख मीरा हुई बावरिया!
सुख चैन सभी त्यागे कृष्ण की भक्ति में दिन रात जागे।
नहीं किसी और से कुछ कहती।
कान्हा की भक्ति में सब कुछ सहती।”
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डाॅ संजीव कुमार विश्वकर्मा जी अपनी रचना” कुछ तो फर्क है” में एक स्थान पर कहते हैं —
” लोग चारदीवारी को दुनिया कहते हैं।
हम समस्त संसार से नाता रखते हैं।
कुछ तो फर्क है लोगों में और मुझमें।
लोग अपनों को भी खोने से डरते हैं।
हम दोनों को अपनाने से डरते हैं।”
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श्रीमती सुमंगला जी अपनी रचना” मीरा का हीरा” में देखिए क्या लिखती हैं —
” बचपन में,
एक साधु से,
ले ली थी,
गिरिधर की प्रतिमा।
तबसे ही मान,
पति वह उनको।
पिता की मृत्यु पश्चात,
अधूरे रह गए अरमाॅ।।”
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अन्त में कवि सुधीर यादव जी अपनी रचना” मीरा का ममीरा” में लिखते हैं—
” प्रेम ही है पूजा भण्डार शक्ति का।
प्रेम से जो सन गया,मालिक वो भक्ति का।
समझे न लोग ,प्रेम की भाषा बदल रही।
नफरत की घोर आग में दुनिया ये जल रही।
ओ सुधीर धन्य,तूने प्रेम से दिल सींचा।
और रस फीके हैं,प्रेम रस मीठा।
प्रेम रस मीठा है,प्रेम रस मीठा।।
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आदरणीय मनोज कुमार सिंह जी का संपादकीय कृति को और अधिक उजागर करता है।कुल २७ साहित्यकारों की रचनाओं का गुलदस्ता”मीरा भई दीवानी” का मुख पृष्ठ वास्तव में बेजोड़ है और जोगन मीरा का चित्र वास्तव में पाठक को दीवाना बना देता है।अंतिम आवरण पृष्ठ पर वंशीवाले की मनमोहनी मूरत मन को मोहने में पूर्ण समर्थ है।बेजोड़ साज – सज्जा और अच्छे श्रेणी के कागज पर अच्छी छपाई कृति को और गुरूतर बनाती है।
२०० रुपए मात्र मूल्य वाली ” मीरा भई दीवानी” वास्तव में एक उत्कृष्ट कृति है जिसमे भक्ति – जान्हवी प्रवहमान है।
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उक्त समीक्षा मौलिक और अप्रकाशित है।—