हम अक्सर बात करते हैं की , गुरु की महिमा बड़ी अपरम्पार है , गुरु ईश्वर से भी बड़ा है। क्या हम सही माइनो में गुरु को वास्तविक गुरु मानते हैं ? आज के परिवेश में शायद यदा कदा ही कोई जौ बिरला होगा जो आजीवन गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है।
कहते हैं की किसी भी मनुष्य की प्रथम गुरु उसकी माँ होती है , ये बात सही भी है क्यूंकि माँ से ही मनुष्य को हर वो चीज सीखने को मिलती है जो उसके जीवन के लिए है। अगर माँ आंतरिक शिक्षा देती है तो पिता भी बालक को बाहरी संसार के बारे में जरुरी होकर इस शिक्षक की भूमिका अदा करता है और वो सब कुछ सिखाता है जो हर मनुष्य के लिए अति आवश्यक है।
आइये हम बात करते हैं एक ऐसी शिक्षा की जो मानव जीवन के उद्धार और प्रगति के द्वार खोलती है , मानव जीवन को सफल बनती है।
जहाँ प्राचीन काल में शिष्य गुरुओ के आश्रम में बाल्य काल से भी कठिन नियमो का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे। वन से ही अपने जीवन पारजोजन हेतु तथा भिक्षा मांगकर काम चलते थे। कोई सुख सुविधा न थी , कोई अच्छा भोजन , अच्छा बिश्तर नहीं, पुरे वस्त्र नहीं तथा सीमित संसाधनों से ही काम चलाते थे। एक कठोर अनुशासन और बेहतर शिक्षण के उच्च मापदंड व्यक्ति के जीवन को एक नहीं ऊंचाई पर ले जाने में सहायक होते थे। कोई भेदभाव नहीं था , किसी राजकुल के शिष्यों को भी अन्य शिस्यो के जैसे ही शिक्षा मिलती थी। साथ साथ उनको युद्धकला भी सिखाई जाती थी और जब वह आश्रम से सांसारिक जीवन में प्रवेश करता था तो उसे माता पिता , भाई , बहिन, मित्रो से सांसारिक ज्ञान भी मिलता था। कठोर अनुशासन ही किसी भी छात्र को नयी ऊंचाइयों पर ले जा सकता है , जिसने कठोर अनुशासन में रहकर कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की है वो सिवाय अपने जीवन को एक सामान्य स्तर से भी नीचे जिया है। वो अपने समाज , परिवार और देश का कभी भला नहीं कर पाया है। क्यूंकि कहा भी गया है की सोना जब तक आग में नहीं तपता है तब तक कुंदन नहीं बन सकता है। जितना तपोगे उतना ही निखरोगे।
आज के परिवेश में हमने शिक्षा का क्या हाल कर दिया है। शिक्षा का अदृश्य रूप से पतन हो रहा है और हम कुछ नहीं कर सकते है , क्यूंकि इस पतन को हमारे द्वारा ही सुरु किया गया है। हमने आज शिक्षा को बाजारों में लेकर खड़ा कर दिया है , जो दुसरो को खरीदने की ताक़त रखती थी वो आज खुद बिचने लगी है और बोली लगाने वाले भी हम ही है, इससे बड़ी, शिक्षा की दुर्गति क्या होगी ? आज हमारी मानसिकता बहुत भी निम्न स्तर पर आ गयी है और हम अपने आप को शिक्षित कहने वाले भी शिक्षा को खरीद और बेच रहे है। क्यों हो रहा है ऐसा , किसी की पास इसका कोई जबाब नहीं है। शिक्षक से लेकर स्टूडेंट्स तक शिक्षा को मजाक बनाये हुए हैं , रेस्पेक्ट नाम की कोई चीज नहीं बची है। आज गुरु और चेला को विभिन्न माध्यमों से मनोरंजन और नुमाइश का जरिया बना दिया गया है , दोनों साथ साथ किसी भी जगह कोई भी व्यसन करते हुए देखे जा सकते हैं तो गुरु और शिस्य में किस बात का अंतर हुआ ? आज गवर्नमेंट ने अपने फायदे के लिए तथाकतित बुध्जीविओं की मदद से कुछ ऐसे नियम बना कर शिक्षण संस्थाओ और शिक्षकों पर जबरजस्ती थोप दिए गए है जो शिक्षा को गर्त में ले जा रहे है। ऐसे नियमो से किसी छात्र को कुछ फायदा नहीं होगा, शिक्षक भी छात्रों को पढ़ाना एक ड्यूटी जैसे करेगा और करता भी है पर शिक्षा और संस्कार कभी नहीं दे सकता है।
हम प्रार्थना में कहते है की
असतो माँ सद गमय , मितोर्मा अमृत गमय।
पर वाकई में हम ऐसा करते है या करने का प्रयास करते हैं , शायद नहीं मन से नहीं करते है।
गुरु की महिमा का गुणगान करना बहुत ही कठिन है , शब्द नहीं होते है हमारे पास उसका गुणगान करने का, जो वाकई में अपने शिष्यों को ज्ञान देते है वो कभी अपने शिष्यों से उसके बदले कुछ नहीं मांगते है , उनके लिए तो वो शिष्य आजीवन उनका आदर सम्मान देता रहे और अपने देश का नाम रोशन करता रहे , वही उनकी सच्ची गुरु दक्षिणा होती है। लेना और देना व्यापर है और आज जो हो रहा है, वो ही शिक्षा का व्यापर है।
गुरु तो पत्थर को भी सोना बना देता है तो हम इंसान क्या चीज है। बस जरुरत है तो बस सही गुरु और सही शिष्य ढूढ़ने की , अरे ढूढ़ने से तो भगवन भी मिल जाते है। गुरु को तो ईश्वर से भी बड़ा मन गया है। गुरु ने ही तो ईश्वर के दर्शन कराये हैं। बिना गुरु के ज्ञान और ज्ञान के बिना ईश्वर की प्राप्ति असंभव है।
हमारे देश या विदेश में ऐसे महान व्यक्ति पैदा हुए जिन्होंने अपने दम पर दुनिया को बदल दिया, शिक्षा की एक नहीं इबारत लिखी और अपना नाम इस संसार में अमर कर गए। हमें भी उनके बताये रास्तों पर चलने की सीख लेना चाहिए और उनका अनुशरण करना चाहिए।
आज ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के अवसर पर आप सभी शिक्षकों को ब्राइट एम् पी पब्लिशर की और से बहुत बहुत बधाई और हम कामना करते है की आपका जीवन प्रकाशमय हो और आप सभी अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन जिम्मेदारी और प्रसन्ता पूर्वक कर सकें।
धन्यवाद